प्यार अमर होता है| Short Heart touching love story
प्यार अमर होता है| Short Heart touching love story
जाड़े के मौसम था और उस दिन तो जैसे ठंड अपनी चरम सीमा पर थी,रास्ते में बहुत कोहरा था।अनुज सुनसान सड़क पर ऑफिस से घर जा रहा था।रास्ते के उस एक पोस्टलैम्प में भी शायद उतनी ही रोशनी थी जितने में उस सड़क का चौराहा दिख रहा था।अनुज के एक हाथ में उसका सूटकेस था और दूसरे हाथ में मोबाइल जिससे वह अपनी पत्नी से बात कर रहा था।अनुज की पत्नी का नाम शिवानी था।
बात करते-करते शिवानी कहती है कि अब से घर के सारे काम तुमको करने पड़ेंगे खाना तुमको बनाना पड़ेगा,कपड़े भी तुमको धोने पड़ेंगे और घर की साफ सफाई भी तुम ही करोगे।
अनुज-अच्छा! वाह मैडम जी नौकरी हम करें फिर घर के काम भी हम ही करें और फिर आप क्याकरोगी,आराम।
शिवानी-हाँ,अब मेरे आराम करने का समय आ गया है।
अनुज(परेशान होकर)-मतलब?
शिवानी-कुछ नही मजाक कर रही हूँ।जल्दी घर आ जाओ।
फिर अनुज के मोबाइल पर अलग अलग नंबर से कॉल आने लगे इससे पहले की अनुज कॉल उठाय उसके फ़ोन की बैटरी खत्म हो गई और फ़ोन बंद हो गया।
अनुज-यार!इस फ़ोन को भी अभी बंद होना था।
अब वो पोस्टलैम्प भी बहुत पीछे छूट गया था सड़क पर चारों तरफ अंधेरा ही अंधेरा था।न कोई रिक्शा वाला और न ही कोई गाड़ी वाला दिखाई दे रहा था,अनुज बेख़ौफ़ होकर चल रहा था।तभी उसे अपने पीछे किसी के चलने की आहट सुनाई दी।अनुज रुख गया तो उन कदमों की आहट भी रुख गई फिर अनुज चलने लगा तो उन कदमों की आहट फिर आने लगी तभी किसी ने पीछे से अनुज का नाम पुकारा।जबकि उस सुनसान सड़क पर अनुज के अलावा और कोई नही था फिर पायल की छम-छम की आवाज आने लगी अनुज उस पायल की आवाज को पहचानता था लेकिन डर के कारण वह कुछ सोच नही पा रहा था।तभी उसके कंधे पर किसी ने हाथ रखा,फिर क्या था अनुज ने आव देखा न ताव और शरीर की सारी बची हुई सकती दौड़ने में झोंक दी।सामने कुछ नही दिख रहा था क्योंकि रास्ते में बहुत ज्यादा कोहरा था लेकिन अनुज उस रास्ते से अच्छी तरह से वाकिफ था।
10 मिनट लगेतार दौड़ने के बाद अनुज जैसे तैसे अपने घर पहुँच गया।अनुज का घर दूसरे माले पर था, सीढ़ियां चढ़ते वक्त उसे उन पायलों की आवाज अभी भी उसके दिमाग में घूम रही थी।शिवानी को कुछ न पता चले इसलिये पहले अपने आप को शांत किया फिर घर के अंदर गया।सोफे पर बैठ कर उसने चेन की सांस ली और शिवानी से एक गिलास पानी लाने को कहा।
शिवानी-क्या बात है बहुत ज्यादा थके हुए लग रहे हो?
अनुज(बात को टालते हुये)-अरे कुछ नही इतनी दूर से पैदल चल कर आ रहा हूँ न इसलिए थोड़ा थक गया हूँ।वैसे आज तुमने इतने सादे कपड़े क्यो पहने हैं और तुम रो क्यों रही हो ?
शिवानी-वो कुछ पुरानी बातें याद आ गईं थीं।जब हमने ये घर लिया था तो हम कितने खुश।
अनुज-तो क्या हुआ हम अभी भी तो खुश हैं।लेकिन आज तुम इतनी भावुक क्यो हो रही हो? और तुम भी जानती हो आज मैं जो कुछ भी हूँ तुम्हारी वजह से ही तो हूँ।तुम मेरा इतना ख्याल रखती हो,मेरे लिए खाना बनाती हो,मेरे हर काम में मेरी मदद करती हो,रोज सुबह जल्दी उठ कर मेरे लिए चाय बनाती हो और मेरे ऑफिस जाने के बाद सारा घर संभालती हो।अगर तुम न होती तो मेरा क्या होता?
शिवानी-अच्छा ठीक है,अब मेरी तारीफ करना बंद करो और खाना खा लो,आज मैं तुम्हारे सिर में मालिश कर देतीं हूँ।
अनुज- हाँ,ये सही है इसके लिए तो मैं हमेशा तैयार हूँ।
अनुज सोच रहा था कि हमेशा चुलबुल रहने वाली शिवानी आज इतनी शांत कैसी थी और थोड़ी बहकी बहकी बातें भी कर रही थी।
अनुज ने शिवानी को हँसाने के लिए कहा थी उसके ऑफिस में एक लड़की उसे पसंद करती है।
शिवानी(ठहाके लगा कर हँसते हुए)-"आये बड़े सलमान खान",उम्र देखी है अपनी बुढ्ढे होने वाले हो।
अनुज के पास सब कुछ था एक अच्छी नौकरी,अच्छी पत्नी,अच्छा घर बस कमी एक चीज की थी।कई डॉक्टरों को दिखाने के बाद भी सभी डॉक्टरों का यही कहना था कि शिवानी माँ बनने में असमर्थ है।कुदरत को भी शायद यही मंजूर था।
कुछ देर बाद शिवानी कपड़े बदल कर आती है और उन कपड़ो में शिवानी ऐसी लग रही थी जैसे मानो स्वर्ग की कोई अप्सरा।
शिवानी(अनुज से)-कितना अच्छा होता न अगर मैं तुम्हारी जिंदगी में नही आती तो,ना हमारी शादी होती और ना ही तुम बिना औलाद के रहते।
अनुज शिवानी के मन की स्थिति को भाँप लिया था और उस समय चुप रहना सही न समझा।शिवानी को अपने सीने से लगते हुए अनुज कहता है कि "शिवानी इस तरह की बातें मत सोचा करो,भले ही हम निसंतान हैं लेकिन तुम मेरे लिए भगवान का दिया हुआ सबसे अच्छा तोफाह हो।"
शिवानी(अनुज से सवाल पूछते हुई)-"मान लो अगर मैं तुम्हे छोड़ कर चली गई तो,किसी ऐसी जगह जहाँ तुम मुझे चाह कर भी ढूंढ़ नही सकते।"
अनुज-ऐसी बातें मत किया करो,तुम जानती हो मैं तुम्हारे बिना नही जी सकता।मेरे शरीर की रग रग में तुम हो लेकिन आज तुम ऐसे बात क्यों कर रही हो?
शिवानी-बस ऐसेही,सुनो अगर कभी मैं न रही तो जीना तुम खुद के लिए,अपने इस प्यारे से घर के लिए,वादा करो मुझसे।
अनुज-ठीक है वादा।लेकिन तुम भी वादा करो कि आज के बाद तुम ऐसी बातें नही करोगी।
फिर कुछ देर इधर-उधर की बातें हुईं और दोनों सो गए।
सुबह 4 बजे अनुज का फ़ोन बजा।उसने फोन उठाया और जो बातें उसने सुनी,उसके बाद उसके रोंगटे खड़े हो गए।
उसने कमरे की बत्ती जलाई तो देखा शिवानी कमरे में नही थी,पूरा घर छान मारा लेकिन शिवानी घर मे भी कही नही थी फिर तुंरत भाग कर अनुज पास के हॉस्पिटल में गया वहाँ कुछ पुलिस वाले उसे एक कमरे में ले गए।जब अनुज ने बेड पर पड़ी चादर को हटाया तो चादर के नीचे उसकी शिवानी थी।उसकी आँखें बंद थीं
अब शिवानी हमेशा के लिए सो चुकी थी।अनुज ने उसे उठाने की कोशिश की लेकिन वह नही उठी।अनुज अपनी पूरी ताकत लगा कर चिल्ला रहा था "शिवानी तुम कुछ बोलती क्यों नही,कुछ तो बोलो" पास में खड़े एक पुलिस वाले ने अनुज को संभालते हुए कहा, "आपकी पत्नी शिवानी जिनका कल सुबह ऑक्सीडें हुआ था,हमने उन्हें यहाँ भर्ती कराया है।लोगो ने बताया कि कल मंदिर जाते वक्त आपकी पत्नी का ऑक्सीडें हो गया।कल आपका फोन लग नही रह था अब जाकर लगा है तो आपको यहाँ बुला लिया।
इतनी देर में अनुज की पलकें एक बार भी नही झपकी थीं वो लगेतार शिवानी को देखे जा रहा था।
शिवानी का कल ऑक्सीडें हुआ था तो फिर रात में वो घर पर कौन थी? अब अनुज समझ चुका था कि घर पर रात में वो उसकी शिवानी ही थी और वो पायल की आवाज भी शिवानी की थी।अब तो अनुज जैसे अंदर से खत्म हो चुका था।उसकी जिंदगी की सबसे बड़ी खुशी भगवान ने उससे छीन ली थी अब उसके जीने का कोई मकसद नही बचा था और उसने भी आत्महत्या करने की ठान ली।
उसने सोचा कि अब उसकी शिवानी इस दुनिया में नही रही तो वो भी जी कर क्या करेगा।फिर वह उसी जगह खुदकुशी करने चला गया जहाँ उसकी शिवानी का ऑक्सीडें हुआ था।तभी उसे शिवानी से किया वादा याद आता है,"अगर मैं कभी न रही तो जीना तुम खुद के लिए,अपने इस प्यारे से घर के लिए।"
उसने जीना चुना,अपनी शिवानी के लिए और घर जाकर शिवानी की तस्वीर को अपने सीने से लगा कर रोने लगा।Shlesh Alankar | श्लेष अलंकार की परिभाषा – उदाहरण श्लेष का शाब्दिक अर्थ – चिपकना होता है।
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